Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

स्नान को पुण्यकर्म बनाया

पाश्चात्य अंधानुकरण के प्रभाव से लोग स्नान की महत्ता भूलते जा रहे हैं । इससे तमोगुण की वृद्धि हुई है और लड़ाई-झगड़ा, अशांति आदि समस्याओं ने घेर लिया है । इन समस्याओं से निजात दिलाने हेतु बापूजी ने स्नान की महिमा बताते हुए स्नान का सुंदर तरीका भी बताया है : ‘‘शास्त्रों में महत्त्व की बात यह भी आयी कि स्नान सनातन है और सनातन पुण्य देता है । सनातन धर्म में संयम का, सदाचरण का, सनातन सुख का स्नान एक मुख्य अंग है । स्कंद पुराण (ब्राह्म खंड, चा. मा. : 1.25) में आता है :

स्नानेन सत्यमाप्नोति स्नानं धर्मः सनातनः ।

धर्मान्मोक्षफलं प्राप्य पुनर्नैवावसीदति ।।

‘स्नान से मनुष्य सत्य को पाता है । स्नान सनातन धर्म है, धर्म से मोक्षरूप फल पाकर मनुष्य फिर दुःखी नहीं होता ।’

वैसे भी देखा जाय तो स्नान सत्त्वगुण बढ़ाता है और सत्त्वगुण सनातनता की तरफ ले जाता है, यह बिल्कुल सत्य है । किसी भी जोगी, साधक को शास्त्र की यह बात अनुभव में आ सकती है ।

स्नान से आपकी सात्त्विकता बढ़ेगी तो आप सत्संग, साधना, सेवा द्वारा सत्य को, सच्चे सुख को पाने में सफल हो जायेंगे । इसलिए कोई भी शुभ कर्म करते हैं तो भाई ! स्नान करके करो । नींद में से उठ के बिना स्नान किये, ऐसे ही जो काम करते हैं, उनकी अपेक्षा जो स्नान आदि करके काम करते हैं उन्हें प्रेरणा, स्फूर्ति आदि विशेष मिलते हैं । अगर सूर्योदय से पहले स्नान हो जाय तो वह विशेष रूप से सत्त्वगुण बढ़ाता है ।

शास्त्र में आया कि गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए । साधारण पानी (ताजे पानी) से सहज स्नान करना चाहिए । सुबह गर्म पानी की अपेक्षा साधारण पानी से नहाने से स्फूर्ति, ताजगी ज्यादा रहती है ।’’ (अत्यंत शीत प्रदेश में रहनेवाले एवं वृद्धावस्था, बीमारी तथा मालिश के बाद के स्नान में गुनगुना पानी उपयोग कर सकते हैं ।)        

 

 

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स्नान के प्रकार

स्नान के कई प्रकार हैं । पूज्य बापूजी बताते हैं : ‘‘पाँच प्रकार के स्नान होते हैं -

(1) ब्रह्म स्नान : ब्रह्म-परमात्मा का चिंतन करके, ‘जल ब्रह्म, स्थल ब्रह्म, नहानेवाला ब्रह्म...’ ऐसा चिंतन करके ब्राह्ममुहूर्त में नहाना, इसे ब्रह्म स्नान कहते हैं ।

(2) ऋषि स्नान : ब्राह्ममुहूर्त में आकाश में तारे दिखते हों और नहा लें, यह ऋषि स्नान है । इसे करनेवाले की बुद्धि बड़ी तेजस्वी होती है ।

(3) देव स्नान : देव-नदियों में नहाना या देव-नदियों का स्मरण करके सूर्योदय से पूर्व नहाना, यह देव स्नान है ।

(4) मानव स्नान : सूर्योदय के थोड़े समय पूर्व का स्नान मानव स्नान है ।

(5) दानव स्नान : सूर्योदय के पश्चात् चाय पीकर, नाश्ता करके 8 से 12-1 बजे के बीच नहाना, यह दानव स्नान है ।

हमेशा ब्रह्म स्नान, ऋषि स्नान करने का ही प्रयास करना चाहिए ।’’

इनके अलावा अन्य 7 प्रकार के स्नानों का भी उल्लेख शास्त्रों में है । उनकी भी महत्ता बापूजी ने बतायी है :

‘‘(1) मंत्र स्नान : गुरुमंत्र जपते हुए अपने को शुद्ध बना लिया ।

(2) भौम स्नान : शरीर को पवित्र मिट्टी स्पर्श कराके शुद्धि मान ली ।

(3) अग्नि स्नान: मंत्र जपते हुए सारे शरीर को भस्म लगा ली ।

(4) वायव्य स्नान: गाय के चरणों की धूलि लगा ली । वह भी पवित्र बना देती है । गाय के पैरों की धूलि से ललाट पर तिलक करके काम-धंधे पर जाय तो सफलता मिलती है अथवा कोई काम अटका है तो वह अटक-भटक निकल जाती है ।

(5) दिव्य स्नान: सूरज निकला हो और बरसात हो रही हो, उस समय सूर्य-किरणों में बरसात की बूँदों से स्नान ।

(6) वारुण स्नान: जल में डुबकी लगाकर नहाना इसको वारुण स्नान बोलते हैं । घर में वारुण स्नान माने पानी से स्नान करना ।

(7) मानसिक स्नान: ‘मैं आत्मा हूँ, चैतन्य हूँ, ॐ ॐ ॐ... पंचभौतिक शरीर मैं नहीं हूँ । बदलनेवाले मन को मैं जानता हूँ । बुद्धि के निर्णय बदलते हैं, भाव भी बदलते हैं, ये सब बदलनेवाले हैं, उनको जाननेवाला मैं अबदल आत्मा हूँ । ॐ ॐ परमात्मने नमः ॐ ॐ...’ इस प्रकार आत्मचिंतन करने को बोलते हैं मानसिक स्नान ।’’