Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

शरीर का खयाल रखना सिखाया

पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् । शरीर धर्म का साधन है । शरीर से ही सारी साधनाएँ सम्पन्न होती हैं । यदि शरीर कमजोर है तो उसका प्रभाव मन पर पड़ता है । शरीर को शास्त्रोचित रीति से खिलाओ-पिलाओ, स्वस्थ रखो ताकि ईश्वरप्राप्ति में काम आ जाय । सूर्योदय से पहले उठकर पूजा करने का अर्थ है ज्ञानदाता का आदर करना । पूजा अर्थात् अपने जीवन में सूर्य के, ईश्वर के सत्कार की क्रिया । यह मानव का कर्तव्य है । भगवान भास्कर, ज्ञानदाता सद्गुरुदेव एवं देवी-देवताओं का आदर तो करना ही चाहिए परंतु इतना ही नहीं, अपने शरीर का भी खयाल रखना चाहिए । शरीर का खयाल कैसे रखें ? नीतिशास्त्र में एक श्लोक आता है :

कुचैलिनं दन्तमलोपसृष्टं बह्वाशिनं निष्ठुरभाषिणं च ।

सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः ।।

‘मलिन वस्त्र पहननेवाले, मलयुक्त दाँतों की सफाई नहीं करनेवाले, भोजन के लिए ही जीनेवाले, कठोर बोलनेवाले तथा सूर्योदय और सूर्यास्त के समय एवं थोड़ी देर बाद तक सोनेवाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है, चाहे वे साक्षात् विष्णु ही क्यों न हों ।’(चाणक्यनीतिदर्पण : 15.4)

स्वच्छता एवं पवित्रता द्वारा लोगों की प्रीति प्राप्त करना, सुरुचि प्राप्त करना - यह भी पूजा का, धर्म का एक अंग है ।