हमारी दिनचर्या का प्रारम्भ प्रातः ब्राह्ममुहूर्त में जागरण से होता है । शास्त्रों की आज्ञा है :
ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्यते । ‘प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठना चाहिए ।’
ब्राह्ममुहूर्त में उठने की महिमा बताते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘जो सूर्योदय से पहले (ब्राह्ममुहूर्त में) शय्या त्याग देता है, उसके अंतःकरण में सत्त्वगुण पुष्ट होता है । वह बड़ा तेजस्वी होता है, उसके ओज की रक्षा होती है और बुद्धिशक्ति बढ़ती है ।
आध्यात्मिक साधना में आगे बढ़ना है तो सूर्योदय से सवा दो घंटे पहले जब ब्राह्ममुहूर्त शुरू होता है, तब उठो या फिर चाहे एक घंटा पहले उठो ।
सुधा सरस वायु बहे, कलरव करत विहंग ।
अजब अनोखा जगत में, प्रातःकाल का रंग ।।
जब चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों और सूर्य की किरणें अभी धरती पर नहीं पड़ी हों, ऐसी संध्या की वेला में सभी मंत्र जाग्रत अवस्था में रहते हैं । उस समय किया हुआ जप-प्राणायाम अमिट फल देता है । दृढ़ इच्छाशक्ति, रोग मिटाने तथा परमात्मप्राप्ति के लिए 40 दिन का प्रयोग करके देखो । यह अमृतवेला है । जिसे वैज्ञानिक सूर्योदय के पहले के हवामान में ओजोन और ऋण आयनों की विशेष उपस्थिति कहते हैं, इसीको शास्त्रकारों ने सात्त्विक, सामर्थ्यदाता वातावरण कहा है । अतः अमृतवेला का लाभ अवश्य लें । प्रातः 3 से 5 बजे के बीच प्राणायाम करने से बहुत लाभ होते हैं ।
ब्राह्ममुहूर्त में सोये पड़े रहने के दुष्परिणाम
जो सूर्योदय से पूर्व नहीं उठता, उसके स्वभाव में तमस छा जाता है । जीवन की शक्तियाँ ह्रास होने का और स्वप्नदोष व पानी पड़ने की तकलीफ होने का समय प्रायः रात्रि के अंतिम प्रहर में ही होता है । अतः प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए, जिससे शरीर में रज-वीर्य का ऊर्ध्वगमन हो, बुद्धि प्रखर हो तथा रोगप्रतिकारक शक्ति सुरक्षित रहे ।’’