रात्रि-शयन भी परमात्मप्राप्ति की साधना
पूज्य बापूजी ने रात्रि-शयन को परमात्मप्राप्ति का साधन बनाने की सचोट साधना बतायी है : ‘‘रात को सोते समय सीधे लेट गये । फिर श्वास अंदर गया तो ‘ॐ’, बाहर आये तो एक (गिनती) । पैर के नख से लेकर शौच जाने की इन्द्रिय तक आपके शरीर में पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता है । शौच-इन्द्रिय के ऊपर से पेशाब की इन्द्रिय के आसपास तक जलीय अंश की प्रधानता है और उससे ऊपर नाभि तक अग्नि देवता की, जठराग्नि की प्रधानता है । नाभि से लेकर हृदय तक वायु देवता की प्रधानता है । इसलिए हृदय, मन वायु की नाईं भागते रहते हैं और हृदय से लेकर कंठ तक आकाश तत्त्व की प्रधानता है ।
रात को जब सोयें तो पृथ्वी को जल में, जल को तेज में, तेज को वायु में और वायु को आकाश में क्रमशः लीन करो । फिर लीन करनेवाला मन बचता है । फिर मन जहाँ से स्फुरित होता है, मन को अपने उस मूल स्थान ‘मैं’ में लीन करो । ‘शांति... शांति...’ - ऐसा करते-करते ईश्वरीय सागर में शांति का अभ्यास करते-करते आप सो गये । ‘सब परमात्मा में विलय हो गया, अब छः घंटे मेरे को कुछ भी नहीं करना है । पाँच भूतों से बने एक शरीर को मैंने पाँच भूतों में समेटकर अपने-आपको परमात्मा में विलय कर लिया है । अब कोई चिंता नहीं, कुछ कर्तव्य नहीं, कुछ प्राप्तव्य नहीं है, आपाधापी नहीं, संकल्प नहीं । इस समय तो मैं भगवान में हूँ, भगवान मेरे हैं । जैसे तरंग सागर है, ऐसे ही जीव ब्रह्म है । मैं ब्रह्मस्वरूप हूँ, चिदानंद हूँ, चैतन्य हूँ । सोऽहम्... शिवोऽहम्... साक्ष्यहम् (मैं साक्षी हूँ)... द्रष्टाऽहम्... जैसे विभु-व्याप्त ! सभी तरंगों का अधिष्ठान पानी है, ऐसे ही चर-अचर का अधिष्ठान मैं चैतन्य हूँ । ॐ आनंद... ॐ आनंद... ॐ हरि... इस प्रकार पाँच भूतों के विलय की प्रक्रिया से गुजरते हुए, पाँच भूतों को जो सत्ता देता है, उस सत्ता-स्वभाव में मैं शांत हो रहा हूँ ।’ इससे समाधि प्राप्त हो जायेगी । अथवा तो ‘इन पाँचों भूतों को समेटते हुए मैं साक्षी ब्रह्म में विश्राम कर रहा हूँ ।’ तो साक्षीभाव में आप जाग जायेंगे । अथवा तो इन पाँचों को समेटकर ‘सोऽहम्... मैं इन पाँचों भूतों से न्यारा हूँ, आकाश से भी व्यापक ब्रह्म हूँ ।’ ऐसा करके सोओगे तो यह साधना आपको पराकाष्ठा की पराकाष्ठा पर पहुँचा देगी । बिल्कुल सरल साधना है । शरणागति, भगवद्भाव, साक्षीभाव अथवा ब्रह्मसाक्षात्कार चाहिए - सभीकी सिद्धि इससे होगी ।
और सुबह जब उठें तो विचारें, ‘कौन उठा ?’ जैसे रात को समेटा तो (उसके उलटे क्रम से) सुबह जाग्रत करिये : ‘मन जगा, फिर आकाश में आया, आकाश का प्रभाव वायु में आया, वायु का प्रभाव अग्नि में, अग्नि का जल में, जल का पृथ्वी में और सारा व्यवहार चला ।’ रात को समेटा और सुबह फिर जाग्रत किया, उतर आये । बहुत आसान साधना है और एकदम चमत्कारी फायदा देगी । केवल 180 दिनों में एक दिन भी खाली न जाय; निश्चय कर लो कि ‘करनी है, करनी है, बस करनी है !’ और आराम से हो सकती है ।’’