चरित्र-निर्माण के लिए आवश्यक है धार्मिक शिक्षा

चरित्र का अच्छा होना शारीरिक शक्ति एवं बुद्धि की प्रखरता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । चरित्र वह भूमि है जहाँ अन्य सब वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं । यदि वही खराब है तो सभी कुछ खराब होगा ।

आज के विद्यालयों व महाविद्यालयों में दी जानेवाली उच्च शिक्षा चरित्र-निर्माण में सहायक नहीं अपितु बाधक ही है । विदेशी नकल पर हमारे देश में चल रही इस प्रवृत्ति को देखकर कोई भी उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं कर सकता । हमने विकासोन्मुख तरुणों और तरुणियों के चरित्र को वर्तमान शिक्षा द्वारा खोखला बना डाला है ।

शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों में दैवी गुणों तथा कर्तव्यपरायणता का विकास करना है । (वैदिक संस्कृति के संस्कारों से युक्त) धार्मिक शिक्षा इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होगी ।

उच्च विज्ञान भौतिकवाद के दृष्टिकोण को त्यागकर अब आत्मिक विकास तथा उपनिषदों की भाँति देवत्व की ओर ले जानेवाला बन रहा है किंतु विज्ञान धार्मिक विश्वास और दैवी गुणों के विकास में तभी सहायक हो सकता हैजब मनुष्य को बचपन में ही उसके अनुकूल शिक्षा दी जाय ।

इसलिए चरित्रवान भारतीयों के निर्माण के लिए विद्यालयों में प्रत्येक विद्यार्थी को धार्मिक शिक्षा देना अनिवार्य होना चाहिए ।

दूरद्रष्टा पूज्य बापूजी की प्रेरणा से अनेक वर्षों से सफलतापूर्वक चलाये जा रहे विभिन्न अभियान विद्यार्थियों में दैवी गुणों व उत्तम चरित्र के विकास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका    निभा रहे हैं ।

इसका जीता-जागता प्रमाण है उन लाखों विद्यार्थियों का जीवनजिन्होंने इन अभियानों से लाभ ले के अपनी सर्वांगीण उन्नति की और हर क्षेत्र में सफलता पा रहे हैं ।    

- लोक कल्याण सेतु, अंक नंबर 225, मार्च 2016