वर्षा ऋतू में स्वास्थ्य-सुरक्षा

 (वर्षा ऋतु : 21 जून से 23 अगस्त 2023)

ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक दुर्बलता को प्राप्त हुए शरीर को वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त होने लगता है । आर्द्र (नमीयुक्त) वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है । शरीर में पित्त का संचय व वायु का प्रकोप हो जाता है । परिणामतः वात-पित्तजनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है । अतः इन दिनों में जठराग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, सुपाच्य व वात-पित्तशामक आहार लेना चाहिए ।

इस ऋतु में उपयोगी कुछ बातें :

(1) भोजन से पूर्व अदरक व नींबू के रस में सेंधा नमक मिला के सेवन करने से वर्षाजन्य रोगों से सुरक्षा में बहुत मदद मिलती है ।

(2) 1 गिलास गुनगुने पानी में 1-2 नींबू का रस व 2 चम्मच शहद* मिलाकर सुबह खाली पेट लें । यह प्रयोग सप्ताह में 3-4 दिन करें ।

(3) खाली पेट सुबह सूर्य की किरणें नाभि पर पड़ें इस प्रकार वज्रासन में बैठ जायें । श्वास बाहर निकालकर पेट को 25 बार अंदर-बाहर करते हुए रंबीजमंत्र का जप करें । फिर श्वास ले लें । ऐसा 5 बार करें । इससे जठराग्नि तीव्र होगी ।

(4) भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी पियें ।

(5) सप्ताह में एक दिन उपवास रखें । इसमें निराहार रहें तो उत्तम अन्यथा दिन में एक बार अल्पाहार लें ।

(6) सूखा मेवा, मिठाई, तले हुए पदार्थ, नया अनाज, सेम, अरवी, मटर, राजमा, अरहर, मक्का, नदी का पानी आदि त्याज्य हैं ।

जामुन, पपीता, पुराने गेहूँ व चावल, तिल या मूँगफली का तेल, सहजन, सूरन, परवल, पका पेठा, टिंडा, शलजम, कोमल मूली व बैंगन, भिंडी, मेथीदाना, धनिया, हींग, जीरा, लहसुन, सोंठ, अजवायन सेवन करने योग्य हैं ।

(7) श्रावण मास में पत्तेवाली हरी सब्जियाँ व दूध तथा भाद्रपद में दही व छाछ का सेवन न करें ।

(8) दिन में सोने से जठराग्नि मंद हो जाती है व त्रिदोष प्रकुपित हो जाते हैं । अतः दिन में न सोयें । नदी में स्नान न करें । बारिश में न भीगें । रात को छत पर अथवा खुले आँगन में न सोयें ।

 

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें लोक कल्याण सेतु अंक 311