गुरुपूर्णिमा पर इतना तो अवश्य करें
संसार के सब वैज्ञानिक तथा उनके आविष्कृत पदार्थ मिलकर मुझे वह सुख नहीं दे सकते जो मुझे सद्गुरु ने अपने दिल में दिलबर (परमात्मा) का सुख दिला के दे दिया । गुरु निगाहों से, वाणी से और अपने आचरण से भी देते हैं; दुःख में दिलासा, सुख में सावधानी और दुःख-सुख के सिर पर पैर रखकर परब्रह्म-परमात्मा का अनुभव करानेवाला प्रसाद भी देते हैं । ऐसे गुरुओं का आदर किये बिना हम कैसे रह सकते हैं ! जो गुरु ने दिया है उसका बदला थोडा चुकायें तभी तो पचेगा, मुफ्त का माल पचेगा नहीं ।
बोले : ‘कुछ तो सेवा करने दो बाबा ! हाँ, तो १० रुपया, १०० रुपया जो भी मेरे को आप गुरुदक्षिणा देना चाहते हैं वह मन-ही-मन ठान लो और मेरी समझकर अपने पास जमा कर लो । फिर तुम जहाँ भी रहते हो वहाँ छोटे-छोटे बच्चे मिलें या पडोसी मिलें उन्हें इकट्ठा करके एक दिन गीता या रामायण का पाठ रखो अथवा प्रभातफेरी निकालो और जितनी दक्षिणा मन में ठानी थी उसकी प्रसादी या सत्संग की पुस्तकें लेकर अपने-अपने इलाके में बाँट दो ।
दूसरी बात है मानस-पूजा करो । षोडशोपचार की पूजा से भी मानसिक पूजा का ज्यादा लाभ होता है । हम तो करते थे । शिष्य को गुरु से जो ज्ञान मिलता है वह शाश्वत होता है, उसके बदले में वह गुरु को क्या दे सकता है ! लेकिन वह कहीं कृतघ्न न हो जाय इसलिए अपने सद्गुरुदेव का मानसिक पूजन करके गुरुपूनम के निमित्त गुरुचरणों में शीश नवाते हुए प्रार्थना करता है : ‘हे गुरुदेव ! हम आपको और तो क्या दे सकते हैं, इतनी प्रार्थना अवश्य करते हैं कि आप स्वस्थ और दीर्घजीवी हों । आपका ज्ञानधन बढता रहे, आपका प्रेमधन बढता रहे । हम जैसों का मंगल होता रहे और हम आपके दैवी कार्यों में भागीदार होते रहें ।
जो प्रतिदिन गुरु का मानसिक पूजन करके फिर ध्यान, जप करते हैं उनका वह ध्यान, जप दस गुना प्रभावशाली हो जाता है और अधिक एकाग्रता से करते हैं तो और दस गुना, मतलब सौ गुना लाभ हो जाता है ।
- लोक कल्याण सेतु अंक नं.311 से...