विजयादशमी विशेष : रावण-दहन की व्यवस्था का रहस्य
चंचलता पर एकाग्रता की विजय, बहिर्मुखता पर अंतर्मुखता की विजय, तुच्छ विकारों पर शुद्ध सत्ता की विजय, दैत्यों पर देवों की विजय, दुःखों पर दुःखहारी हरि के नाम की, ॐकार की विजय का पर्व है विजयादशमी ।
देश में रावण-दहन की प्रथा का हम विरोध नहीं करते हैं लेकिन रावण-दहन प्रथा केवल पटाखे फोडकर प्रदूषण फैलाने के लिए नहीं है, ज्ञान-ध्यान की समझ पाकर भक्तिरस और कीर्तन के प्रभाव से समाज की उन्नति करने के लिए भी है ।
रावण जलाने के पीछे नासमझी जलनी चाहिए, नारेबाजी जलनी चाहिए । रावण के प्रति नफरत अपना दिल गंदा करेगी । रावण के प्रति द्वेष नहीं, राम के प्रति राग नहीं, राम और रावण के प्रति सूझबूझ कि राम और रावण एक ही चैतन्य की लीला है और जगत को संदेश देने के लिए लीला होती रहती है ।
जब मैं रावण के प्रति नफरत नहीं करता हूँ तो तुम्हें भी रावण के प्रति नफरत नहीं करना है । रावण की मान्यता के प्रति सावधान होना है कि दुनियावी चीजों से तुम पूर्ण निर्दुःख, पूर्ण सम्पन्न नहीं हो सकते हो ।
रावण खुद भी सुखी नहीं हुआ क्योंकि सोने के घर आधिभौतिक हैं और जीवात्मा आध्यात्मिक है ।
जब तक आध्यात्मिक गुरुओं का सत्संग नहीं मिलता तब तक सोने के घरों से भी दुःख नहीं मिटता - यह रावण के जीवन का संदेश दुनियादारों को याद रहे इसलिए हर १२ महीने बाद रावण को तीरों का निशाना बनाना पडता है ।
लोग बोलेंगे कि ‘इस दिन राम की विजय हुई और यह रावण की पराजय का दिन था । लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से देखोगे तो समता की विजय हुई और संसार की आसक्ति की पराजय हुई ।
संसार की आसक्ति कितनी भी करोगे तो भी रावण जितनी ऊँचाई को कोई छू नहीं सकता और फिर भी निराशा व बदनामी हाथ लगती है । तुम आत्मा को छोडकर यश चाहोगे तो यश नहीं टिकेगा, अपयश होगा ।
तुम अपनी आत्मशांति-विश्रांति को छोड के सत्ता व सौंदर्य को चाहोगे तो सत्ता और सौंदर्य छिन जायेंगे तथा निराशा एवं उदासी हाथ लगेगी । इसलिए बार-बार अपने प्रियतम आत्मा में, मेरे स्वभाव में आया करो ।
मेरा स्वभाव दूर नहीं, तुम्हारी गहराई में मेरा स्वभाव छुपा है । उसका अनुभव करने का सरल साधन है ‘विश्रांतियोग । चुप बडी साधना है । एकदम शांत ! न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ।।...
इसीमें श्रीकृष्ण थे, श्रीराम थे, सांई श्री लीलाशाहजी थे । रावण थोडा चूक गया, उसकी चूक दिखाने के लिए हर १२ महीने बाद दशहरे पर रावण को जलाया जाता है वरना रावण हर साल जलाने के योग्य नहीं है । समाज की चूक निकालने के लिए यह व्यवस्था है ।
लोक कल्याण सेतु सितम्बर 2018 अंक नंबर 255 से...