सामाजिक व पारिवारिक एकसूत्रता का पर्व : रक्षाबंधन
भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से पवित्र रिश्तों, पवित्र भावों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है | यह पर्व मात्र रक्षासूत्र के रूप में राखी बांधकर रक्षा का वचन नहीं देता वरन् संयम, स्नेह, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के द्वारा हृदयों को बाँधने का भी अवसर देता है | श्रीकृष्ण ने कहा है :
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव |
‘यह संपूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुँथा हुआ है |’ (गीता : ७.७)
‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है | इसी तरह रक्षासूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है |
पहले रक्षाबंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था अपितु आपत्ति आने पर रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए भी उसे रक्षासूत्र बाँधा या भेजा जाता था | माता कुंती ने अभिमन्यु को, द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को, रानी शचि ने अपने पति इंद्र को रक्षासूत्र बाँधा था, ऐसे ही गुरु शिष्य को और शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते हैं |
प्राचीनकाल में जब स्नातक शिक्षा पूरी करके गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उन्हें रक्षासूत्र बांधता था और आचार्य उसे उसे इस संकल्प के साथ रक्षासूत्र बाँधते थे कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है उसका जीवन में समुचित ढंग से प्रयोग करे |
स्वतंत्रता संग्राम में जन-जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया था | रविंद्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन पर्व को बंगाल-निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस पर्व का उपयोग किया था | अब तो प्रकृति-संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परंपरा भी शुरू हो गयी है |
रक्षाबंधन के विभिन्न स्वरुप
इसे श्रावणी भी कहते हैं | इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपाकर्म होता है, विधिपूर्वक नया जनेऊ पहना जाता है | ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि पर्व माना जाता है |
महाराष्ट्र में यह नारियली पूर्णिमा के नाम से भी विख्यात है, जिसमें नदी या समुद्र के तट पर जाकर जनेऊ बदलते हैं व नारियल चढ़ाकर समुद्र देवता की उपासना करते हैं |
पश्चिमी भारत (विशेषतः कोंकण एवं मालाबार में) न केवल हिन्दू बल्कि मुसलमान एवं व्यवसायी पारसी भी समुद्र तट पर जाते हैं और व्यापारी जहाजों की तूफ़ान से रक्षा हेतु समुद्रदेव को पुष्प एवं नारियल चढ़ाते हैं |
पश्चिम बंगाल में झूलन पूर्णिमा के नाम से इसे मनाया जाता है |
दक्षिण भारत में (केरल, तमिलनाडु आदि) में अवनि अवित्तम के रूप में यह मनाया जाता है | इस दिन ब्राह्मण नया जनेऊ धारण कर ऋषियों को जल अर्पित करते हैं | पुराने जनेऊ की भांति बीते वर्ष के पापों को त्याग देने और स्वच्छ नवीन जनेऊ की भांति सादगी, संयम वाला नया जीवन जीने की प्रतिज्ञा ली जाती है | इस पर्व का एक नाम उपाकर्म भी है, जिसका अर्थ है – नयी शुरुआत |
बुंदेलखंड में इसे कजरी पूर्णिमा कहा जाता है | इस दिन कटोरे में जौ व धन बोया जाता है तथा ७ दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वंदना की जाती है |
राजस्थान में रामराखी (भगवान के लिए) और चूड़ाराखी (भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाने वाली राखी) बाँधने का रिवाज़ है |
गुजरात में यह पवित्रोपना के रूप में भी मनाया जाता है | इस दिन शिवजी की पूजा की जाती है |
नेपाल में यह जनेऊ पूर्णिमा के नाम से यह पर्व मनाया जाता है |
- लोक कल्याण सेतु (अंक-२१७, जुलाई २०१५)