विलक्षण है रामजी का राजधर्म !
(श्रीराम नवमी : 10 अप्रैल)
सीताजी को रावण के बंधन से मुक्त कराने के लिए श्रीरामजी वानर-सेनासहित समुद्र पार कर चुके थे । तब रावण ने अपने दो मंत्री - शुक और सारण को वानर-सेना की गुप्त जानकारियाँ लेने भेजा । वे वानर का रूप बनाकर रामजी की सेना में घुस गये । अभी वे सेना का निरीक्षण कर ही रहे थे कि इतने में विभीषण की नजर उन पर पड़ी । विभीषण देखते ही उन्हें पहचान गये और पकड़कर श्रीरामजी के पास ले गये ।
रामजी के समक्ष आते ही शुक और सारण को निश्चय हो गया कि ‘अब मृत्यु निश्चित है !’ भय के मारे वे काँपने लगे और हाथ जोड़कर रामजी को सारी सच्चाई बता दी । मृत्युदंड के अधिकारी शत्रु-पक्ष के गुप्तचरों को देखकर रामजी मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले : ‘‘यदि तुमने सारी सेना देख ली हो तथा रावण के कथनानुसार सब काम पूरा कर लिया हो तो अब तुम दोनों प्रसन्नतापूर्वक लौट जाओ । और यदि कुछ बाकी रह गया हो तो विभीषण तुम्हें दिखा देंगे । तुम्हें अपने जीवन के विषय में कोई भय नहीं होना चाहिए क्योंकि शस्त्रहीन अवस्था में पकड़े गये तुम दोनों दूत वध के योग्य नहीं हो ।’’ रामजी ने विभीषण को दोनों गुप्तचरों को छोड़ने की आज्ञा दी ।
विलक्षण है श्रीरामजी का राजधर्म ! शत्रु-पक्ष के निहत्थे मंत्रियों पर वार नहीं करते, उन्हें मृत्युदंड नहीं देते बल्कि प्रसन्नताभरा व्यवहार करके उन्हें वापस लौटने की आज्ञा देते हैं । परंतु युद्धभूमि में धर्म-मर्यादाओं के पालन करने से चूकते भी नहीं हैं मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामजी । धर्मपालन के साथ रामजी में अन्याय के प्रतिकार का भी अद्भुत सामर्थ्य था । जब दोनों गुप्तचर जाने लगे तब रामजी ने उनसे कहा : ‘‘लंका पहुँचकर राक्षसराज रावण को मेरा संदेश सुना देना कि रावण ! जिस बल के भरोसे तुमने सीता का अपहरण किया है, उसे अब सेना और बंधुजनों सहित रणभूमि में आकर दिखाना । कल सवेरे ही तुम लंकापुरी और राक्षसी सेना का मेरे बाणों से विध्वंस होता देखोगे ।’’
रामजी की समता, सुहृदता, धर्मवत्सलता और न्यायप्रियता के आगे शुक और सारण नतमस्तक हो गये । ‘धर्मवत्सल रघुनाथ की जय !’ कहकर उनके चिरंजीवी होने की शुभकामना करते हुए दोनों लंकापुरी वापस लौट गये ।
रामजी का वह लीला-विग्रह तो अभी नहीं है परंतु उनका आदर्श चरित्र आज भी लोगों में सज्जनता, स्नेह, धर्मपालन आदि अनेक सद्गुण भर रहा है । कोई भी कार्य धर्म-अनुकूल है कि नहीं ? श्रीरामचन्द्रजी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे । किसको कड़ा दंड देना चाहिए और किसको केवल लाल आँख दिखानी चाहिए, किसके आगे नतमस्तक हो जाना चाहिए और किसके आगे केवल मुस्कान से काम चलाना चाहिए - यह रामचन्द्रजी, श्रीकृष्ण, जनकजी जानते थे और जो भी आत्मज्ञानी संत होते हैं वे जानते हैं । इसीलिए उनके द्वारा हम लोग उन्नत होते हैं ।
लोक कल्याण सेतु, अंक नंबर 225 से...