अंग्रेजी की गुलामी छोड़ो, हिन्दी अपनाओ
राष्ट्रभाषा दिवस : 14 सितम्बर
जिस देश के वासियों की बोलचाल परदेश की भाषा पर जाती है, जिस देश के वासियों का पहनावा परदेशी होने लगता है और जिस देश के वासी परदेश से प्रभावित होते हैं उस देश को कंगाल बनाना, गुलाम बनाना आसान हो जाता है ।
मैं जापानवालों को 4 बार धन्यवाद देता हूँ । मैं अमेरिका और दुनिया के अन्य देशों में कई बार गया । मैंने देखा कि जापानी अमेरिका में आते हैं तो वे प्रायः अपनी भाषा में बात करते हैं परंतु दुर्भाग्य यह है कि अपने देश के लोग हिन्दुस्तान में रहते हुए भी जब हवाई जहाजों में यात्रा करते हैं, जहाँ 99-99.5 प्रतिशत हिन्दुस्तानी होते हैं, तो वहाँ भी अंग्रेजी में बकवास करते रहते हैं और सब शब्द सही भी नहीं होते हैं तथा बीच-बीच में हिन्दी मिला देते हैं । ऐसी-ऐसी भाषाएँ बोलते हैं कि अपने को दया आती है कि ‘ये बेचारे पढ़-लिख के कैसे अंग्रेजों के गुलाम हो रहे हैं, पिट्ठू हो रहे हैं !’
‘सर, सर...’ नहीं,
‘महोदय’, ‘श्रीमान’ कहो
वे लोग कितने नासमझ हैं जो अपने देश में भी अपनी भाषा (हिन्दी) को अशुद्ध करनेवाले ‘सर-सर, हेलो, हाय’ जैसे शब्द बोलचाल या लोक-व्यवहार के समय घुसेड़ देते हैं ।
लोग ‘महोदय’, ‘श्रीमान’ नहीं बोलते हैं, ‘सर ! सर !...’, ‘येस सर... नो सर...’ बोलते हैं । ‘हाँ सर ! मैंने आपका दर्शन किया था...’ अब उन बेचारों का दोष नहीं है, शिखर से लोगों का मस्तिष्क अंग्रेजों की गुलामी के संस्कारों से भरा होने से ‘सर-सर’कहलाने की लोगों को गंदी आदत पड़ गयी है । वास्तव में भारतीय संस्कृति-अनुरूप सही शब्द हैं - श्रीमान, महोदय । माता-पिता को, श्रेष्ठ साहब को ‘जी’ कहना यह साहब के लिए लम्बी उम्र होने की शुभ भावना है ।
आम तौर पर ‘सर’ का जिस अर्थ में प्रयोग हो रहा है, हमारी संस्कृति में उस अर्थ में ‘सर’ का कोई मायना ही नहीं है । तो जो ‘येस सर’ कहलाते हों वे ‘जी महोदय’ कहलाने की कोशिश करें और जो ‘सर’ बोलते हैं उनको हम कहते हैं कि पैर के बिना सर नहीं टिकता है । सर की शोभा तब है जब पैर हैं, पैर काट दो तो शरीर की शोभा क्या ! एक जगह पड़ा रहता है बेचारा सर । तो जो ‘सर’ कहते हैं वे अब ‘सर सर सर...’ छोड़कर महोदय, श्रीमान आदि कह दिया करें, ये शब्द बढ़िया हैं ।
‘हेलो-हाय’ नहीं, ‘हरि ॐ’ कहो
आप यह प्रण करो कि ‘आज से किसीसे मिलने पर या दूरभाष (टेलीफोन, मोबाइल आदि) पर हाय, हेलो की जगह हरि ॐ अथवा राम-राम बोलेंगे ।’ जब सामनेवाला मित्र अस्सलामु अलैकुम - वालैकुम अस्सलाम बोलता है तो तुम हाय-बाय काहे को करते हो ? तुम भी हरि ॐ, राम-राम बोल दिया करो । वह हाय-बाय या अस्सलामु अलैकुम नहीं छोड़ता है तो तुम अपना ‘हरि’ या ‘राम’ क्यों छोड़ते हो ?
तो मैं यह दक्षिणा माँगता हूँ कि आप भी इस गुलामी को निकालने का यत्न करेंगे और आपके सम्पर्क में जो आयें उनको भी जरा यह संदेश दे देंगे ।