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ज्ञान, भक्ति और पुण्य परिपक्व करनेवाला महापर्व : गुरुपूर्णिमा
भगवान वेदव्यासजी ने हमारी वृत्तियों को, हमारे जीवन को सुव्यवस्थित करने के लिए वेदों का वर्गीकरण किया एवं व्याख्या की, 18 पुराण रचे । अब भी कोई श्रीमद्भागवत पर सत्संग करता है तो उसके लिए बोलते हैं कि व्यासपीठ पर फलाने संत अथवा फलाने विद्वान विराजेंगे । व्यासजी के सिद्धांत में प्राणिमात्रब का मंगल छुपा है । व्यासपीठ पर बैठनेवाले की जवाबदारी हो जाती है कि व्यासजी के सिद्धांत के विरुद्ध एक शब्द भी न कहे ।
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्र्नेत्रब ।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः ।।
‘प्रफुल्ल कमलदल के समान बड़े-बड़े नेत्रें तथा विशाल बुद्धिवाले व्यासजी ! आपको नमस्कार है । आपने (जगत को प्रकाश देने के लिए) महाभारतरूपी तेल से भरे हुए ज्ञानरूपी दीपक को जलाया है ।’ (ब्रह्म पुराण : 245.11)
हमारे जीवन में ज्ञानमय प्रकाश हो ऐसी व्यवस्था करनेवाले महर्षि वेदव्यासजी के प्रति, सद्गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है गुरुपूर्णिमा । इस पूर्णिमा का दूसरा नाम है ज्ञानपूर्णिमा, व्यासपूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा । लघु कर्मों से, लघु समझ से, लघु जीवन से ऊपर उठाकर ऊँचे पद में प्रतिष्ठित कर दे इसलिए इसको गुरुपूनम बोलते हैं ।
गुरु का महत्त्व इतना है !
जब श्रीरामजी वनवास जा रहे थे तो गुरु वसिष्ठजी ने कहा : ‘‘सीताजी गहने पहन के जायेंगी ।’’
अब रामजी तो तपस्वी वेश में और सीताजी गहने-गाँठे पहन के महारानी होकर जंगल में जायें, व्यवहार में ऐसा नहीं होता था लेकिन वसिष्ठजी बोले : ‘‘मेरी आज्ञा है ।’’
वही आज्ञा काम आयी जब रावण सीताजी को अपहरण करके ले जा रहा था तो सीताजी गहने फेंकती गयीं । उसीसे रास्ता मिला कि इधर से आया, इधर गया । गुरु की कैसी दूरदृष्टि होती है ! रामायण में आता है :
गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई । जौं बिरंचि संकर सम होई ।।
बिरंचि माने ब्रह्माजी, उनके जैसी सृष्टि बनाने की ताकत हो और शंकरजी की नाईं प्रलय करने की ताकत हो फिर भी सद्गुरु के बिना जन्म-मरण के चक्कर से तुम पार नहीं हो सकते हो । गुरु की इतनी महत्ता है !
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
ऐसे महापुरुषों के आदर के लिए गुरुपूर्णिमा महोत्सव है कि हमारा ज्ञान परिपक्व हो, हमारी भक्ति, पुण्य परिपक्व हों । जो व्रत, नियम, उपवास नहीं करते, सद्गुरुओं के दर्शन-सत्संग का लाभ नहीं लेते वे मरने के बाद बड़े-बड़े बुद्धिमान होने पर भी नीच योनियों में जाते हैं, जैसे राजा नृग गिरगिट व राजा अज अजगर बन गया, मुसोलिनी प्रेत बनकर भटक रहा है, अब्राहम लिंकन व्हाइट हाउस में प्रेत हो के भटक रहा है । तो जीवन में सद्गुरु और सद्गुरु का मंत्रब, भगवान और भगवान की प्रीति व व्रत-उपवास होते हैं तो मनुष्य-जीवन उन्नत होता है ।
- लोक कल्याण सेतु अंक नंबर 288, जून 2021