औषधीय गुणों की खान : नीम
नीम का वृक्ष प्राणदायक, आरोग्यवर्धक और रोगनाशक माना गया है । नीम सड़नरोधी (antiseptic) का काम करता है । नीम के कोमल पत्ते खाने से रक्त की शुद्धि व वृद्धि होती है तथा मधुमेह (डायबिटीज) के नियंत्रण में भी मदद मिलती है ।
नीम की पत्तियाँ उत्तम जीवाणुनाशक व रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ानेवाली हैं । ये नेत्रों के लिए हितकर, कृमि, पित्त व विष नाशक एवं वातकारक होती हैं । इनके पानी से पोंछा लगाने, पत्तियों का धुआँ करने, बंदनवार (तोरण) लगाने से घर का वातावरण शुद्ध व संक्रमणरहित बनता है एवं मक्खी-मच्छर व रोग के कीटाणु भाग जाते हैं ।
औषधीय प्रयोग :
पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त : नीम की पत्तियों का 10-20 मि.ली. रस शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त (नाक, योनि, मूत्र आदि द्वारा रक्तस्राव होना) में आराम मिलता है । पेट के कृमि नष्ट होते हैं ।
चेचक : चेचक निकलने पर नीम की पत्ते लगी छोटी टहनियों को द्वार पर लटका दिया जाता है व इनसे रोगी को हवा दी जाती है । यह हवा कीटाणुओं को फैलने से रोकती है तथा रोगी की दाहकता में शीतलता प्रदान करती है ।
दाँतों की सुरक्षा : नीम की दातुन दाँतों को चमकीला, स्वस्थ तथा मजबूत बनाती है व मुँह की दुर्गंध मिटाती है । यह निरंतर करने से दाँतों में कभी कीड़े नहीं लगते और अधिक उम्र तक दाँत मजबूत बने रहते हैं । मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं ।
घाव : नीम का तेल लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं ।
अरुचि : नीम के पत्ते चबाकर खाने से अरुचि दूर होती है ।
पेट के कीड़े : 15 नीम की पत्तियाँ हींग के साथ खाने से या नीम की पत्तियों का रस 3 काली मिर्च के साथ सुबह पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं ।
गर्मी होने पर : नीम की पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह-शाम पीने से अति तीव्र जलन भी शांत हो जाती है ।
हाथ-पैर की जलन में : नीम के पत्तों को पीसकर तलवों पर लेप करने से हाथ-पैर की जलन मिट जाती है ।
* पकी हुई 10 निबौलियाँ रोज खायें । इससे रक्त की शुद्धि होती है तथा भूख भी खुलकर लगती है । यह बवासीर-नाशक है व पेट के सभी विकारों में लाभकारी है । 21 दिन तक यह प्रयोग करने से रक्त-विकार, मंदाग्नि और पित्तप्रकोप दूर होते हैं ।
*नीम के फूलों का रस शीत व रक्तशुद्धिकर है । 10 से 20 मि.ली. रस पीने से फोड़े-फुंसियों में शीघ्र राहत मिलती है । चैत्र महीने में 15 दिन नीम के फूलों का रस पीने से वर्षभर रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है ।
निबौली की स्वास्थ्यवर्धक चटनी :
10-10 ग्राम निबौली व अदरक तथा थोड़े तुलसी-पत्ते एवं काली मिर्च लेकर चटनी बना लें । पेट के विकारों में यह लाभदायी है ।
विशेष : नीम के रस के स्थान पर ‘नीम अर्क’ का भी उपयोग कर सकते हैं । (यह सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध है ।)
लोक कल्याण सेतु मार्च 2016 से...