ज्योतियों का पर्व - दीपावली कैसे मनायें...
दीपावली का पावन पर्व अन्धकार में प्रकाश करने का पर्व है । यह ज्योतियों का पर्व हमें सन्देश देता है कि हम अपने ह्रदय में अज्ञानरुपी अन्धकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश भरे ।
भारतीय संस्कृति में सभी त्यौहारों में पर्वों का पुंज दीपावली शीर्ष स्थान पर है । और सब त्यौहार तो एक दिन के लिए आते हैं पर दीपावली ५ दिनों तक हमें आनंदित - उल्लसित करती है, प्रसन्नता बढाती है ।
पर्व का पहला दिन है “धनतेरस” : इस दिन भगवान धन्वंतरी का प्राकट्य हुआ था ।इसलिए धनतेरस को उनका पूजन करके सभी के दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ के लिए मंगल कामना की जाती है ।
इस दिन धनतेरस के दिन संध्या के समय घर के मुख्य द्वार के बाहर एक पात्र में अनाज रखें । उसके ऊपर आटे से बने हुए दीपक से यमराज के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती । दीये का मुख दक्षिण की ओर होना चाहिए ।
इस दिन नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है पर लोहे के बर्तन खरीदना वर्जित है ।(एल्युमिनियम के बर्तन हमेशा त्याज्य है) ।
पद्म पुराण के अनुसार धनतेरस से भाईदूज तक जो कुछ भी दान किया जाता है वह सब अक्षय एवं सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है ।
दूसरा दिन है नरक चतुर्दशी : इस चतुर्दशी को सभी तेलों में लक्ष्मीजी का वास और सभी जलों में गंगाजी का वास माना गया है । इस दिन तिल के तेल से मालिश एवं प्रात:स्नान विशेष फलदायी है । आज के दिन सूर्योदय के पहले स्नान करने से यमलोक नहीं देखना पड़ता ।
“सनत्कुमार संहिता” और “धर्मसिन्धु” ग्रन्थ के अनुसार जो नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के बाद स्नान करता है उसके शुभ कर्मों का नाश हो जाता है । इस दिन मंदिर, रसोईघर, गौशाला में व तुलसी, पीपल आँवला आदि के नीचे विशेष रूप से दीपक जलाना चाहिए ।इस दिन रात्रि में जागरण करके मंत्रजप करने से मन्त्र सिद्ध होता है ।
रात्रि में सरसों के तेल या घी के दीये से काजल बनायें । इसको आँखों में आँजने से विशेष लाभ होता है ।
तीसरा दिन है दीपावली : इस दिन प्रात:काल स्नान के बाद इष्टदेव, गुरुदेव का पूजन करें । दीपावली के दिन ब्रह्ममुहूर्त में जो लक्ष्मीजी का पूजन करता है उसे धन संपत्ति की कमी नहीं पड़ती । इस दिन पहले सात्विक ब्राह्मणों और भूखे मनुष्यों (अभावग्रस्तों) को भोजन कराकर बाद में स्वयं करना चाहिए ।
रात्रि को गुरु वंदना, गणेश वंदना तथा सरस्वती वंदना करके लक्ष्मीजी का पूजन प्रारम्भ करना चाहिए । पूजन के लिए १३ व २६ दीपकों के बीच चौमुखा दीपक जलाएँ ।
पूजा के बाद दीपकों को घर के मुख्य मुख्य स्थानों पर रखें । चौमुखा दीपक रातभर जले ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ।
दीपावली की रात्रि चार महारात्रियों में से एक है । यह जप ध्यान के लिए यह जप ध्यान के लिए बहुत ही उत्तम होती है । अत: रात्रि जागरण करके परमात्म प्राप्ति के उद्देश्य से ॐ अथवा तो गुरुमंत्र का अधिक से अधिक जप करना चाहिए, ॐकार व गुरुमंत्र के अर्थ में एकाकार होते जाना चाहिए । स्वास्थ्य मन्त्र या लक्ष्मीप्राप्ति के मन्त्र का भी जप कर सकते हैं ।
लक्ष्मीजी कहती हैं : जो व्यक्ति अक्रोधी, भक्त, कृतज्ञ, क्षमाशील, जितेन्द्रिय तथा सत्व संपन्न होते हैं, जो स्वभावत: निज धर्म कर्तव्य तथा सदाचार में सतर्कता –पूर्वक तत्पर होते हैं और धर्मज्ञ व गुरुजनों की सेवा में सतत लगे रहते हैं तथा इसी प्रकार जो स्त्रियाँ शीलवती, पतिपरायणा, सद्गुणसंपन्ना, सबका मंगल चाहने वाली होती है, उनके यहाँ मैं सतत निवास करती हूँ ।
जो व्यक्ति नास्तिक, अकर्मण्य, कृतघ्न, चोर तथा गुरुजनों के दोष देखने वाला होता है, उसके यहाँ मैं (लक्ष्मी) निवास नहीं करती । (महाभारत, अनुशासन पर्व-दानधन पर्व)
चौथा दिन है नूतन वर्ष (बलि प्रतिपदा) : इस दिन कोई भी शुभ कर्म करने के लिए शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती ।
- लोक कल्याण सेतु, सितम्बर 2014, अंक- 207 से...