आरोग्य, धन व प्रसन्नता देनेवाली रात्रि : शरद पूर्णिमा
(शरद पूर्णिमा : 20 अक्टूबर)
वर्ष में एक दिन ऐसा है कि जिस दिन चाँद पृथ्वी के ज्यादा निकट होता है । वह है शरद पूनम का दिन ।
भगवान ने गीता में कहा है : नक्षत्राणामहं शशी... ‘मैं नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ ।’ नक्षत्रों की अपेक्षा चन्द्रमा में भगवान की विशेष आभा है । वे कहते हैं :
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ।। (गीता : 15.13)
सोम अर्थात् चन्द्रमा होकर औषधियों को पुष्ट करता हूँ और सभीके हृदयों की धड़कन चलानेवाला आत्मराम भी मैं ही हूँ ।
लक्ष्मीप्राप्ति का सुंदर उपाय :
स्कंद पुराण में आता है कि शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में वर देनेवालीं लक्ष्मीदेवी विचरण करती हैं । जो उस रात्रि को थोड़ा जागरण करता है, लक्ष्मी-पूजन करता है, लक्ष्मीनारायण के तेज को चंदा में निहारता है, अपने दिल को दिलबर से शीतल करता है (अर्थात् अंतर्यामी परमात्मा में विश्रांति पाता है), उस प्यारे की चाँदनी में अपने चित्त को प्रसन्न करता है, भगवान का सुमिरन-चिंतन करता है, लक्ष्मीजी कहती हैं कि ‘मैं उसके घर निवास करती हूँ ।’
जो जागता है वह पाता है । जो सोता है वह खोता है ।।
शरद पूनम की रात को थोड़ी देर जागिये और अपने दिल में जागिये ।
अशांत व्यक्ति भी पूनम के चन्द्रमा को देखे अथवा चन्द्रमा की रोशनी में थोड़ा टहले, विचरण करे तो उसकी अशांति कम हो जाती है ।
आरोग्यता हेतु अवश्य करें यह प्रयोग :
पूनम का चाँद और उसमें भी आश्विन शुक्ल पूर्णिमा का चाँद औषधियों को पुष्ट करने के लिए, मनुष्यों के मन की प्रसन्नता के लिए, वर्षभर के आरोग्य में मदद के लिए बड़ा प्रसिद्ध है ।
शरद पूनम की रात को दूध में चावल के पोहे अथवा पके हुए चावल डालकर खीर बना के सूती कपड़े से ढक के चन्द्रमा की चाँदनी में रख देना चाहिए । रात्रि 10 से 12 के बीच चन्द्रमा की जो किरणें पड़ती हैं वे बड़ी हितकारी होती हैं । आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति, जीवनीशक्ति बढ़ाती हैं । तो खीर आदि को चन्द्रकिरणों में रखकर फिर भगवान को मानसिक भोग लगा के खाना चाहिए । वर्षभर निरोग रहें अथवा किसी कारण रोग आये तो उसे आसानी से भगा सकें इसलिए यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए ।
इस दिन प्रसन्न रहना, उछलना-कूदना, नृत्य-गान - यह सब अच्छा है लेकिन इसके पीछे सदाचार की सुगंध होनी चाहिए । सौंदर्य अगर शीतल नहीं है अर्थात् उसमें सदाचार नहीं है तो वह सौंदर्य मादक होता है, उच्छृंखल होता है । अतः नृत्य-गान के साथ ध्यान-भजन का सुंदर समन्वय होना चाहिए । इससे चित्त पवित्र होता है ।
जैसे सूर्य व चन्द्रमा की किरणों द्वारा अन्न, औषध और फलों को पोषण मिलता है, ऐसे ही भगवान के ध्यान और जप के द्वारा तुम्हारे मन और बुद्धि को, चित्त को, तुम्हारे अंतःकरण को पोषण मिलता है । तुम उस परमात्मा को प्यार करो, थोड़ा दुलार करो, नहीं तो उससे प्रार्थना करो : ‘हे प्रभु ! मेरा मन तेरे ध्यान से पुष्ट हो, पवित्र हो, सुंदर हो, शीतल हो । मेरे हृदय में तेरा ज्ञान-प्रकाश हो ।...’
लोक कल्याण सेतु अंक नंबर 267, सितम्बर 2019 से...